""dashahra"'

""आज दशहरे पर मेरी एक कविता""
हे श्री रघुवर फिर तुमको,
इस धरती पर आना होगा।
इस गरीबी रूपी रावण को,
आकर के मिटाना ही होगा।
इस गरीबी के कारण ही तो,
आतंक मचा पूरे देश में हैं।
पेट की आग बुझाने के लिए,
मानव दानव के वेश में हैं।
फसल हुई खराब किसान की,
कर्च हुआ उस पर भारी।
लगाकर फंदा गले में उसने,
मरने की कर ली तैयारी।
आकर के तुमको श्री रघुवर,
उसको बचाना ही होगा।
हे श्री रघुवर फिर तुमको,
इस धरती आना होगा।।
लंका में रावण के भय से,
पूरी लंका परेशान थी।
आज गरीबी के भय से,
ये पूरी जनता परेशान हैं।
ईमान, धर्म, कर्म कुछ नही,
यहाँ पैसा सबसे ऊपर हैं।
जिसके पास हैं रघुवर,
वही मानव यहाँ 'सुपर' है।
यहाँ इंसानियत कोई मोल नही,
यहाँ सबकुछ पैसे से चलता हैं।
यहाँ के अमीर कुत्ते खाते हलवा,
और गरीब भूख से मरता हैं।
"सनी" करे अब विनति तुमसे,
कि तुम्हे दर्श दिखाना ही होगा।
पैसो का 'पावर' तुम्हे रघुवर,
आकर के मिटाना ही होगा।
हे श्री रघुवर फिर तुमको,
इस धरती पर आना होगा।
इस गरीबी रूपी रावण को,
आकर के मिटाना ही होगा।।
:-सनी लाखीवाल

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