पतंग जैसी होती है आदमी की जिन्दगी - सनी लाखीवाल

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पतंग_जैसी_होती_है_आदमी_की_जिन्दगी

पतंग एक महज आसमान में उड़ने वाला कागज का टुकड़ा ही नही। यह वह है जो जिन्दगी जीने का ढंग सिखाती है। पतंग अपने सतरंगी रंगो से जीवन के सम्पूर्ण रंग बताती है और कहती है कि जिंदगी एक कागज का टुकड़ा है जो बुलदिंयों के आसमां को छूना चाहती है। जब वह अपनी मंजिल की सीढ़ियाँ चढ़ने लगती हैं। तब आसमान की अन्य पतंगें उसे रोकती हैं और उसे काटना चाहती हैं। उस समय पतंग के चारो ओर समस्याओं का घेरा बन जाता हैं। वह समस्याओं को काटते हुए आगें बढ़ती हैं। तो उच्चाई पर चलती हवा उसका स्वागत करती हैं। तब उच्चाई पर पहुची अन्य पतंगें उसको विरोध करती हैं और डराती हैं। नीचे पायदान में उड़ रही पतंगें उससे घृणा करती हैं और उसे काटने व गिराने का असंभव प्रयास करती हैं। वह पतंग सबकी प्रवाह किये बगैर आसमां की अंंनत उच्चाइयों तक उड़ती जाती हैं। वह अपने विश्वास, हौसलों व परिवार रूपी डोरी के कारण ही आसमां में उड़ पाती हैं। उसे मालूम हैं कि यदि वह डोरी उसका साथ नहीं देती तो वह बिलकुल भी नहीं उड़ पाती और कचरे में पड़ी होती।

बुलंदियों के आसमां में उड़ती पतंग।
अनंत समस्याओं से लड़ती पतंग।।
जो विश्वास व हौसलों की डोरी टूटती,
तो कचरे के ढ़ेर में जा गिरती पतंग।।

-सनी लाखीवाल
शाहपुरा(जयपुर) राजस्थान
14/01/2022
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