गजल

काफिया मिलाओ-54
तिथि- 24/12/2017
वार-रविवार
              *गज़ल*
अपने  होठों  पर सजाना चाहता हूं।
मैं गमों को भी गुनगुनाना चाहता हूं।।

भाँति नही मुझको ये मतलबी दुनिया,
मैं चाँद  पर  घर  बसाना चाहता हूं।।

वसुधा के गुलशन में फूल बने कांटे,
कांटो से उपवन महकाना चाहता हूं।।

आस्तीन के सांप पल रहे हर घर में,
कुचल उनका फन,मिटाना चाहता हूं।।

हीन-भावना मिटाकर इनके दिलो से,
इन पशुओ को इंसान बनाना चाहता हूं।।

सनी लाखीवाल
राजपुरा(शाहपुरा) जयपुर
#साहित्यसागर

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