लघुकथा- गुलाम



लघुकथा सृजन - 14
विषय - गुलाम
तिथि - 05-12-2017
वार - मंगलवार
रमेश को एक अच्छी कंपनी में अच्छे वेतन के साथ जोब मिली । वो काफी खुश था और खुशी-खुशी अपने मिठाई लेकर अपने घर लौट रहा था। तभी वह एक अनजान शख्स से टकराया और मिठाई गिर गयी। अब रमेश का गुस्सा सातवे आसमान पर था। रमेश उस अनजान शख्स से लड़ने लगा कि कितनी महंगी मिठाई थी। जो तुमने गिरा दी और मेरा कितना नुकसान कर दिया। तुम्हे मिठाई का मुल्य चुकाना पड़ेगा। मैं तुम्हे यहाँ से तभी जाने दूंगा जब तुम मेरी मिठाईयो का मूल्य अदा करोंगे। वह अनजान शख्स हाथ जोड़कर कहने लगा कि बाबू जी मैं इस में नया हूं । रोजगार की तलास में गांव में मां, व बीवी-बच्चो को छोड़कर आया हूं। मेरे पास पैसे तो नही पर मैं आपके घर काम कर सकता हूं जिससे मैं आपकी मिठाईयो का कर्ज भी चुका दूंगा। मैं आपके घर का #गुलाम बन कर रहूंगा। आप जो बोलोगे वो काम करूंगा, बस आप मुझे कुछ पैसे दे देना। जिससे मेरे परिवार का गुजारा हो सके। रमेश यह बात सुनकर बहूत खुश हुआ क्योंकि उसे भी घर के काम के लिए एक नौकर की आवश्यकता थी। रमेश ने उसका नाम पुछा तो उसने कहा - रामू!अब रामू रमेश के साथ रमेश के घर गया और वहां काम करने लगा। सप्ताह, महिना व पुरा वर्ष बीत गया। जब भी रामू घर जाने की बात करता तो रमेश कहता कि तू चला जायेंगा तो घर काम कौन करेंगा,,,तेरा बाप,,,,।
दिनो दिन रमेश का वेतन बढ़ता गया पर रामू का वही का वही था। एक रोज रामू के घर से फोन आया कि उसकी मां कि तबीयत खराब हैं उसे जाना पड़ेगा। रामू ने यह बात रमेश को कही कि उसकी मां बिमार हैं, उसे कुछ पैसो के साथ घर जाना पड़ेगा, तो रमेश ने गुस्से में कहा कि तेरी मां आज ही मर रही हैं क्या? 5-10 दिन बाद चले जाना अपना वेतन लेकर। रामू रोता रहा पर रमेश अपनी जीद पर अटल था। दो दिन बाद खबर आयी कि रामू की मां का स्वर्गवास हो गया है। रामू को बहूत दुख हूआं और अपने मालिक रमेश पर गुस्सा भी आया। लेकिन वो क्या कर सकता था क्योंकि रमेश उसका मालिक था और वो उसका #गुलाम । रमेश ने रामू को कुछ पैसे दिये जिससे वह गांव गया और मां का अंतिंम संस्कार करके वापिस लौट आया। रमेश का व्यवहार तो वही था पर रामू की चेहरे की हँसी जा चुकी थी। कुछ दिन गुजरे ही थे कि रमेश की माँ की तबीयत अचानक खराब हो गयी। रमेश की पत्नी ने उसके ओफिस फोन कियाकि रमेश को घर भेज दो। रमेश ने अपने बोस से छुट्टी मांगी तो बोस ने साफ-साफ मना कर दिया कि आज उसे छुट्टी नही मिल सकती क्योंकि कंपनी का काम आज बहूत ज्यादा हैं। और रमेश का बोस कहता हैं कि वह घर जा तो सकता हैं पर वह अपने रोजगार से हाथ धो बैठेगा। रमेश को ना चाहते हुये उस दिन काम करना पड़ा। जब वह शाम को घर लौटा तो पता चला कि आज उसकी मां को रामू ठीक समय पर होस्पिटल ना ले जाता तो उसकी मां मर जाती। रमेश को अपनी गलती का पश्तावा था। रमेश ने रामू गले लगाया और शुक्रिया अदा किया। रामू से क्षमा भी मांगी क्योंकि रामू को घर नही भेजा था इसलिए । रमेश ने रामू का वेतन भी बढ़ा दिया। अब रामू बहूत खुश था लग रहा था कि रामू के चेहरे की हँसी लौट रही थी।
रमेश को समझ आ गया था कि इस दूनिया में हर इंसान किसी-ना-किसी का गुलाम होता हैं।
सनी लाखीवाल
राजपुरा(शाहपुरा) जयपुर
#साहित्य सागर

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