Sunny Di sayari

"सनी के अल्फाज"
कैसे मनाऊ तुमको अब तुम ही दो बता,
क्यों रूठ गये हमसे क्या हूयी हैं खता,
तुम्हे बेइन्तहा चाहना, यही थी गलती,
तुम्हे टूटकर चाहने की, क्या यही हैं सज़ा।1।

पल दो पल तो सामने तुम आ जाओ जनाब,
तुम्हारी सूरत की मूरत को दिल में लू बसा,
कर रहा हूँ विनती बस इतनी-सी खुदा से,
मेरे शरीर में रूह की जगह तुम जाओ शमा।2।

फिर देखते हैं तुमको, कैसे रूठते मुझसे,
जब रूठोगें मुझसे तो मेरी बुझ जाये समा,
तब तेरे प्यार में, मैं ही खुशनसीब हूँ,
तेरे प्यार मोहब्बत में मिली मौत की सजा।3।

इससे ज्यादा खुशनसीबी और क्या होगी मेरी,
तेरे लिये ही जीया और तेरे लिये ही मरा,
तुम ऐसे रूठे हो मुझसे, मैं तुमको न मना सका,
तेरी खुशियो के खातिर ही, सदा के लिए मैं सो रहा ।4।

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